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दयाधर्म वखाएं, व्रतमाहे जेम ब्रह्मवत जाणुं ॥ पर्वतमाहे वमो मेरू होश, तिम शत्रुजय सम तीर्थ न कोई ॥५॥ ॥ ढाल बीजी ॥ त्रएय पढ्योपम ए ॥ देशी ॥
॥ आगे ए आदि जिनेसर, नानि नरिंद मलार ॥ शत्रुजय शिखर समोसरया, पूरव नवाणुं ए वार ॥६॥ केवलझान दिवाकर, स्वामी श्री ज्ञषन जिणंद ॥ साथें चोराशी गणधर, सहस्स चोराशी मुणिंद ॥७॥ बहु परिवार परवरया, श्री शत्रुजय एक वार ॥ षन जिणंद समोसरया, महिमा न लाचुं ए पार ॥॥ सुर नर कोमी मख्या तिहां, धर्म देशना जिन नाषे ॥ पुं मरिक गणधर आगलें, शत्रुजय महिमा प्रकाशे ॥॥ सांजलो घुमरिक गणधर, काल अनादि अनंत ॥ ए तोरथ ने शाश्वतुं, आगे असंख्य अरिहंत ॥ १० ॥ गणधर मुनिवर केवल, पाम्या अनंती ए कोमि।मुक्तं गया श्ण तीरथ वली, जाशे कर्म विठोमि ॥ ११ ॥ कर जिके जग जीवमा, तिर्यच पंखी कहीजें ॥ ए तीरथ सेव्याथकी, ते सीके लव त्रीजे ॥ १५ ॥ दी
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