________________
(४२) अग्यार जलेरी जी॥मु०॥शा हेमचंदनी दखणातीजो ॥ती० ॥ देहरीमा जोमी सोहाती जी।मु० ॥॥शारामजी गंधारी कीधो जी ॥ ती० ॥ प्रासाद उत्तंग प्रसिद्धो जी ॥ मु॥तिहां चौमुख देखी आणंडुजी॥ ती० ॥ सात प्रतिमा साथे वंॐ जी ॥ मु० ॥ए॥ खट देहरी डे तस संगें जी ॥ती॥ जिन नमीयें तालीश रंगें जी ॥ मु० ॥ तिहां चोवीश जिननी मामी जी
ती॥ जिनसंगें लेश्ने गहामी जी ॥ मु० ॥ १० ॥ मूलकोटनी जमतीमांहे जी ।। ती० ॥ फिरती जे चार दिशायें जी ॥मुण॥ पांचशे समश: सुखकंदो जी ॥ ती० ॥ फिरता सघले जिन वंदो जी ॥ मु० ॥ ११ ॥ मूलकोटनां चैत्य निहाले जी ॥ती० ॥ एकशो पां. शठ सरवाले जी ॥ मु०॥ तिहां प्रजु सगवीससे वंदो जी ॥ती॥ कहे अत ते चिर नंदो जी ॥ मु॥१॥ ॥ ढाल पांचमी । वात करो वेगला रही ॥
विशरामी रे ॥ए देशी ॥ ॥ हवे हाथीपोलनी बाहेरे ॥ विशरामी रे ॥ बे गोंखे जिनराज ॥ नभुं शिर नामी रे ॥ तेहथी द
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org