SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ () ॥ सूरि धनेसर श्म कहे, महावीरे कडं एम ॥१॥ जेहवो तेहवो दर्शनी, शत्रुजे पूजनीक ॥ जगवंतनो नेख मानतां, लाल होवे तहकीक ॥२॥ श्री शत्रुजा उपरे, चैत्य करावे जेह ॥ दल परिमाण समुं लहे, पट्योपम सुख तेह ॥ ३ ॥ शत्रुजा उपर देहरुं, नवूनी पावे कोय ॥ जीर्णोधार करावतां, गणुं फल होय ॥४॥ शिर उपर गागर धरी, स्नात्र करावे नार ॥ चक्रवर्तीनी स्त्री थक्ष, शिवसुख पामे सार ॥५॥ काती पूनेम शत्रुजें, चमीने करे उपवास ॥ नारकी शोसागर तणो, करे कर्मनो नाश ॥ ६॥ काती परव महोटुं का, जिहां सिद्धा दश कोमि ॥ ब्रम्ह स्त्री बालकहत्या, पापथी नाखे डोम ॥ ७॥ सहस्र लाख श्रावक जणी, जोजन पुण्य विशेष ॥ शत्रुज साधु पमिलानतां, अधिको तेहथी देख ॥ ॥ इति ॥ ॥ ढाल पांचमी॥धन्य धन्य गज सुकुमारने॥ ए देशी॥ ॥शत्रु0 गयां पाप बूटीयें, लीजें बालोयण एमो जी ॥ तप जप कीजें तिहां रही, तीर्थकर का तेमो जी ॥श ॥ १॥ जिण सोनानी योरी करी, ए आलो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005394
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1923
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy