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(४०) णा लोंबडीयानी देहरीमा, दश प्रतिमा जो हेरी रे ॥ त्रिजु० ॥११॥ संघवी ताराचंद देवल पासे, देहरी त्रय डे अनेरी रे ॥ तेहमां दश जिनप्रतिमा निरखी, थिर परिणीत यश् मेरी रे ॥ त्रिजु० ॥१२॥ पांच जाश् याना देहरामांहे, प्रतिमा पांच बे महोटी रे ॥ बीजी तेत्रीश जिन पमिमा बे, एह वात नहिं खोटी रे ॥ त्रिजु० ॥ १३ ॥ अमदावादीनुं देहरु कहियें, तेहमां प्रतिमा तेर रे ॥ ते पळवाडे देहरीमांहे, प्रणमुं आठ सवेर रे ॥ त्रिजु० ॥ १४ ॥ शेठ जगन्नाथ जीयें कराव्युं, जिनमंदिर जले जावें रे॥तेहमां नव जिनपमिमा वंदी, कवि अमृत गुण गावे रे॥त्रिजु०॥१५॥ ॥ ढाल चोथी ॥ तुमें पीला पीतांबर पहेस्यां जी,
मुखने मरकलडे ॥ ए देशी ॥ ॥रायणथी उत्तर पासें जी, तीरथना रसीया ॥ जिनवर जिनघर नबासें जी ॥ मुज हियडे वसीया ॥ ए आंकणी ॥ सहु नाखुं जो शिर नामी जी॥ती॥ मुझ मनना अंतरजामी जी ॥मु ॥१॥ जिनमुखायें रूषन जिणंदो जी ॥ ती० ॥ तिम नरत बाहुबलि वं.
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