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मल अनंत जिन धर्म ए शांति, कुंथु र मल्लि नमुं एकांति, मुनिसुव्रत शुद्ध पंथी ॥ नमि पास ने वीर चोवीश, नेम विना ए जिन त्रेवीश, सिद्धगिरि श्राव्या ईस ॥२॥ जरतराय | जन साधें बोले, स्वामी शत्रुंजय गिरि कुण तोले, जिननुं वचन अमोले ॥ षन कहे सुणो जरतराय बहरी पलतां जे नर जाय, पातक नूको थाय ॥ पशु पंखी जे इमगिरि यावे, जव त्रीजे ते सिद्ध थावे, अजरामर पद पावे ॥ जिनमत में शेत्रुंजो वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहे आयो, सुतां सुख र आयो ॥ ३ ॥ संघपति नरत न रेश्वर आवे, सोवन तणां प्रासाद करावे, मणिमय मूरति ठावे ॥ नाजिराया मरुदेवी माता, ब्राम्ही सुं दरी बहेन विख्याता, मूर्ति नवाएं जाता ॥ गोमुखने चक्केसरी देवी, शत्रुंजय सार करे नित्यमेवी, तप ग उपर देवी ॥ श्रीविजयसेन सूरीश्वरराया, श्रीविजयदेवसुरि प्रणमी पाया, रुषनदास गुण गाया ॥ ४ ॥ ॥ श्रीशत्रुंजयनां एकवीश नाम कहीयें ढैयें || विमल गिरि मुत्तिनिलर्ड, शत्रुंजो सिद्ध खित्त पुंमरि
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