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(३०) त्रीश चोवीशी, वली विहरमान विदेहें जी॥ एकशो सीतेर उत्कृष्ट काले, संप्रति वीश स्नेहें ॥ ९ ॥ ॥२६॥ पागंतर ॥ दश क्षेत्र मल त्रीश चोवीशी, एकशो शाठ विदेहें जी ॥ उत्कृष्टा विहरमान विजुजी, संप्रति वीश स्नेहें ॥ हुं०॥ चोवीश जिननां पंच कल्याणिक, एकशो वीश संजारी जी ॥ शाश्वता चार प्रनु शरवाले, सहसकूट निरधारी ॥ हुं ॥१७॥ गोमुख यद चक्केसरी देवी, तीरथनी रखवाली जी ॥ ते प्रजुनां पदपंकज सेवे, कहे अमृत निहाली हुं० १७॥ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ मुनिसुव्रत जिन अरज
हमारी॥ ए देशी ॥ ॥ एक दिशाथी जिनघर संख्या, जिनवरनी संन लावू रे ॥ तमथी उलखाण करीने, ते अहि गण बता रे ॥ त्रिजुवन तारण तीरथ वंदो ॥१॥ ए
आंकणी॥रायणथी दझिणने पासे, देहरी एक जलेरी रे ॥ तेहमा चौमुख दोय जुहारु, टावू नवनी फेरी रे ॥ त्रिनु० ॥२॥ चोमुख सर्व मलीने लूटा, वीश संख्याये जाणो रे ॥ बुटी प्रतिमा आठ जुहारी, करी
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