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________________ (७४) गिरि आय रे ॥ पांच कोमिशुं पुंमरीक सिका, तेणें पुंगरीक कहाय रे ॥श ॥४॥ नमी विनमि राजा विद्याधर, बे बे कोमी संघात रे ॥ फागुण शुदि दशमी दिन सिहा, तेणें प्रणमुं प्रजात रे ॥ श० ॥५॥ चैतर मास वदि चौदशने दिन, नमी पुत्री चोसह रे ॥ अणसण करी शत्रुज गिरि उपर, ए सहु सिझा एकल रे ॥ श० ॥६॥ पोतरा प्रथम तीर्थकर केरा, द्राविम ने वारिखिर रे ॥ कार्तिक शुदि पुनम दिन सिका, दश कोमी मुनि निःशस्य रे ॥ श॥७॥ पांचे पांगवण गिरि सिझा, नव नारद ऋषिराय रे ॥ सांब प्रद्युम्न गया तिहां मुक्तं, आठे कर्म खपाय रे ॥ श० ॥ ७ ॥ नेम विना त्रेवीश तिर्थकर, समोसरया गिरिश्रृंग रे॥ अजित शांति तीर्थकर बेहु, रह्या चोमासुं रंग रे॥शा ॥ ए ॥ सहस्स साधु परिवार संघातें, थावच्चा सुत साधरे ॥ पांचशे साधुशुं शैलंग मुनिवर, शत्रुजे शिवसुख लाध रे ॥ श० ॥१०॥ असंख्यांता मुनि शत्रुजे सिझा, जरतेसरने पाट रे ॥ राम अने जरतादिक सका, मुक्ति तणी ए वाट रे ॥ श० ॥१॥ जालीम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005394
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1923
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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