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( ४४ ) पीया ॥ वि० ॥ सहस्स फणा श्रीपास ॥ न० ॥ ८ ॥ विमलवसहियें चैत्य बे ॥ वि० ॥ जू जूलवणीमां चार ॥ न० ॥ वली जमतो चोमुख बे मल । ॥वि० ॥ तिहां एक्याशी जिनद्वार || न० || || नेमीश्वर चोरी जिहां ॥ वि० ॥ तिहां एकसो सीतेर देव || न० ॥ मूल नायकशुं वंदीयें ॥ वि० ॥ वली लोकनाल ततखेव ॥ न० ॥ १० ॥ विमलवसही पायें अडे || वि० ॥ देहरा दोय निहाल || न० ॥ प्रतिमा व जुहारीयें ॥ वि० ॥ त्तम करी उजमाल ॥ २० ॥ ११ ॥ पुण्य पापनुं पारखं || वि० ॥ करवाने गुणवंत ॥ न० ॥ मोक्षवारी नामें अबे || वि० ॥ तिहां पेसी निकलो संत ॥ न० ||१|| तीरथनी चोकी करे | वि० ॥४॥ वली संघतणी रखवाल ॥ न० ॥ करमशाहें थापीया ॥ वि० ॥ सहु विघ्न हरे विसराल ॥ न० ॥ १३ ॥ सघले अंगें शोजता ॥ वि ॥ भूषण काकजमाल ॥ न० ॥ चर या चोली पेरणे ॥ वि० ॥ शोहे घाटमी लाल गुलाल ॥ न० ॥ १४ ॥ चतुर्भुजा चक्केंसरी ॥ वि० ॥ तेहना प्रणमी पाय | न० ॥ संघ सकल लग करे ॥
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