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(७१) ए तीर्थ रुजकूटादिकनी परें प्रायःशाश्वतो जे. कालं करी घट वध थाय परंतु सर्वथा नाश न थाय (सो के०) ते विमल गिरि तीर्थ (जयन के ) जयवंतो वों.
॥अथ ॥ ॥श्री सिहाचलजीनो रास प्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥श्री रिसदेसर पाय नमी, आणी मन आनंद ॥ रास जणुं रलियामणो, शत्रुजय सुखकंद ॥ ॥१॥ संवत् चार सत्त्योतरें, हुवा धनेसर सूरि ॥ तिमें शत्रुजय महातम का, शीलादित्य हजूर ॥२॥ वीरजिणंद समोसरया, शत्रुजय उपर जेम ॥ इंद्रादिक बागल कह्यु, शत्रुजय महातम एम ॥ ३ ॥ शत्रुजय तीरथ सारिखं, नही तीरथ कोय ॥ स्वर्ग मृत्यु पातालमें, तीरथ सघलां जोय ॥४॥ नामें नव निधि संपजे, दीठे पुरित पलाय ॥ नेटतां जवजय टले, सेवंतां सुख थाय ॥५॥ जंबूनामें द्वीप ए, दक्षिण जरत मकार ॥ सोरठ देश सोहामणो, तिहां के तीरथ सार ॥६॥
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