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(७२) ॥ ढाल पहेली ॥ नयरी द्वारामती ॥ ए देशी ॥
॥राग रामग्री॥ ॥शत्रुजय ने श्रीपुमरिक, सिझदेत्र कहुं तहकीक ॥ विमलाचलने करुं प्रणाम, ए शत्रुजानां एकवीश नाम ॥१॥ए आंकणी॥सुरगिरि महागिरि ने पुण्यराशि,श्री पद पर्वतेंद्र प्रकाश ॥ महातीरथ पूरवें सुखकाक, ए शत्रुजानां एकवीश नाम ॥२॥ शाश्वतपर्वत ने दृढश क्ति, मुक्तिनिलो तेणें कीजें जक्ति ॥ पुष्पदंत महापद्म सुगम ॥ ए० ॥ ३ ॥ पृथ्वीपीठ सुनद्र कैलास, पातालमूल अकर्मक तास ॥ सर्वकाम कीजें गुणग्राम ॥ ए० ॥४॥ शत्रुजयनां एकवीश नाम, जपेजे बेग अपणे गम ॥ शत्रुज यात्रानुं फल लहे, महावीर नगवंत एम कहे ॥ ए० ॥५॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ शत्रुजो पहेले अरे, असी जोयण परिमाण ॥ पहोलो मूलें जंचपणे, बबीश जोयण जाण ॥१॥ सीत्तेर जोयण जाणवो, बीजे आरे विशाल ॥ वीश जो यण उंचो कह्यो, मुऊ वंदन त्रण काल ॥२॥ शाठ
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