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________________ (६५) दान ॥ फल तस पामे रे, पंच कोमी गुण मान ॥वीर ॥५॥ नक्तं जव्य जीव जे होय, पंच नवें मुक्ति लहे सोय ॥ तेहबां बाधक डे नहिं कोय, व्यव हार केरी रे, मध्यम फलनी ए वात ॥ उत्कृष्टं नोगें रे, अंतरमुहूर्त विख्यात, शिव सुख साधे रे, निज आतम ने अवदात ॥वीर॥६॥चैत्री पूनम महिमा देख, पूजा पंच प्रकार विशेष ॥ कीजें नहिं ऊणमी कांश रेख, णीपरें नांखे रे, जिनवर उत्तम वाण ॥ सांजली व ऊया रे, केश्क नविक सुजाण ॥ इणीपरें गाया रे पद्म विजय सुप्रमाण ॥ वीर ॥ ७ ॥ इति स्तवनं ॥ ॥ अथ श्री शत्रुजयस्तुतिः॥ ॥ श्री शत्रुजय मंगण, शषन जिणंद दयाल ॥ मरुदेवा नंदन, वंदन करूं त्रएय काल ॥ ए तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार ॥ आदीश्वर आव्या, जा णी लान अपार ॥ १॥ त्रेवीश तीर्थकर, चमिमा ३ णे गिरि जावें ॥ ए तीरथना गुण, सुर असुरादिक गावे ॥ ए पावन तीरथ, त्रिथुवन नहिं तस तोलें ॥ ए तीरथना गुण, सीमंधर मुख बोले ॥२॥ पुंमरिक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005394
Book TitleShatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1923
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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