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लीधो लीधो सवि परिवार ॥ ज० ॥ संघपति तिलक सोहामधुं ए, जालें धराव्यं सार ॥ ज० ॥ ३ ॥ पग पग कर्म निकंदता ए, आव्या श्राव्या आसन जाम ॥०॥ गिरि देखी लोचन ठख्यां ए, धन धन शत्रुंजय नाम ॥ ज० ॥ ४० ॥ सोवन फूल मुक्ताफलें ए, वधाव्या गिरिराज ॥ ज० ॥ दीये प्रदक्षिणा पाखती ए, सीधां संघल काज ॥ ज० ॥ ४१ ॥
॥ ढाल बही ॥ जयमालानी ॥ प्रभु पासनुं मुखकुं जोतां ॥ ए देशी ॥
॥ काज सीधां सकल हवे सार, गिरि दीठे हर्ष पार ॥ ए गिरिवर दरिसण जेह, यात्रा पण कहियें तेह ॥ ४२ ॥ सूरज कुंम नदी शेत्रंजी, तीरथ जलें नाह्मा जी || रायण तलें रुषन जिणंद, पहेला प गलां पूजे नरिंद ॥ ४३ ॥ वली इंद्रवचन मन आ णी, श्रीरुषजनुं तीरथ जाणी ॥ तव चक्री जरत न रेश, वार्मिंकने दीधो आदेश ॥ ४४ ॥ तेणे शत्रंजा ऊपर चंग, सोवन प्रासाद जंतुंग || नीपायो अति मनो हार, एक कोश जंचो चडबार ||४५ ॥ गाउ दोढ (व
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