Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 85
________________ ( २) ॥ १० ॥ कुंवारी परिव्राजिका, सधव विधव गुरु नारो जी ॥ व्रत जांजे तेहने का, उमासी तप सारो जी ॥श ॥११॥ गो विप्र बालक ऋषि, एहनो घातक जेहो जी ॥प्रतिमा आगे आलोचतां, बूटे तप करी एहो जी ॥श ॥१५॥इति ॥ ॥ ढाल बही ॥ ऋषन प्रजुजीयें ॥ ए देशी ॥ ॥ संप्रतिकाले शोलमो ए, ए वरते जे उकार ॥शत्रुजय यात्रा करूं ए सफल करूं अवतार ॥श ॥ १ ॥ बहरि पालतां चालीयें ए, शत्रुज केरी वाट ॥ पाली तात्त पहोंचीयें ए, संघ मल्या बहु थाट ॥श ॥२॥ ललित सरोवर देखीयें एवली सत्तानी वाव ॥ तिहां विशामो लीजियें ए. वमने चोतरे आव ॥ श० ॥३॥ पालीताणे पावमी ए, चढीयें उठीप्रजात॥शेजूंजीनदी सोहामणी ए, थकी देखात ॥श ॥४॥ चढियें हिंगलाजने हडे ए, कलिकुंम नमीयें पास ॥ बारीमा हे पेशीयें ए, आणी अंग उल्हास ॥ श० ॥ ५॥ मरुदे वी टुक मनोहरु ए, गजचढी मरुदेवी माय ॥ शांतिना थजिन शोलमो ए, प्रणमीजें तसु पाय ॥ श० ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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