Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 38
________________ (३५) ग स्वामी, हारे थावच्चा नमुं शिर नामी रे॥नले॥१५॥ जूषणकुंढ वामी जोश वंदो सुकोशल मुनि पद सुख कंदो रे ॥ नले ॥१६॥ आगल हनुमंत वीर कहाये, हारे तिहांयी बेवाटें जवायें ॥नले ॥ १७ ॥ माबी दिश रामपो हुं रंजी, साहामी दीसे नदी शत्रुजी रे ॥ जले ॥ १७ ॥ जातां जमणी दिसे वंदो नाली, मुनि जाली मयाली उवयाली रे ॥ जले ॥ १ए ।। तिहांथी माबी दिशें साहामा सोहावे, नमो देवकी षट्सुत नावे रे ॥ नले० ॥ २० ॥श्म शुजनाव थकी उत्कर्षे, रामपोलमा पेसीये हरखे रे ॥ नले ॥ ॥१॥ कुंतासर पाले नवघण जालो, जेह कीधी शा ह सुगालो रे ॥ नले० ॥ २२ ॥ धाश् सोपान चढी अति हरखो, जश् वाघणपोले निरखो रे ॥ जले ॥ ॥३३॥ थिरताये शुभ योग जगावो, कहे अमृत नावया जावो रे ॥नले ॥ २४ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ सीता हरखीजी,उबायो यनुमं तको लश्कर, घटा ज्युं उमटी श्रावनकी॥सीता _हरखी जी हरखी जी॥ ए देशी ॥ ॥ निरखी जी निरखी जी,हुंतोहररे निरखी जी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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