________________
(५०) हार ॥एहने॥ ए आंकणी ॥१॥ तेहमां थावच्चा सुत सेलग, सूरि प्रमुख सुखदायी रे ॥ इणगिरि सीधा तेहनां पगलां, बंई सस्स अढाइ ॥ एहने ॥२॥ पासें विहार उत्तंग विराजे, रंगमंमप दिशि चार रे ॥ शेठ शिवासोमजीयें कराव्यो, खरची वित्त उदार ॥ एहने ॥३॥ अनंत चतुष्टय गुण निपज्याथी, सर खां चारे रूप रे ॥ परमेश्वर शुज समय थाप्या, चारे दिशायें अनूप ॥ एहने ॥ ४ ॥ ते श्री कृषन जिने श्वर चौमुख, बीजा जिन त्रेताल रे ॥ शुनिमित्त का रण लही एहवां, हुं प्रणमुं त्रएय काल ॥ एहने ॥ ॥ ५ ॥ उपर चोमुख बवीश जिनशु, देखी सुरित नि कंडे रे ॥ चोवीश वट्टो एक मलीने, चोपन प्रतिमा वंडं ॥ एहने ॥ ६ ॥ साहमा मुमरिक स्वामी बेग, पुमरिकवर्णा राजे रे ॥ तस पद वंदी जोडे देहरी, तेहमां थून विराजे ॥ एहने ॥॥ षन प्रनु ने पुत्र नवाणुं, आप नरत सुत संगे रे ॥ एकशो साठ सम य एक सीधा, प्रणमुं तस पद रंग ॥ एहने ॥ ७ ॥ फिरती जमतीमांहे प्रतिमा, एकशो ने त्रीश रे ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org