Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 58
________________ (५५) वार,प्रदक्षिणा फरिये रे ॥ स्वास्तिक दीपक सार, त्यां करीये रे ॥१॥ पूजा विविध प्रकार, नृत्य बनावो रे ॥ श्म सफल करी अवतार, गुणी गुण गावो रे ॥ निज अनुसारे शक्ति, तीरथ संगे रे ॥ तुमें साधु साहामी जक्ति, करजो रंगे रे ॥ ११ ॥ पालीताणुं धन्य धन्य ते प्राणी रे ॥ जिहां तीरथवासी जन्न, पुण्य कमाणी रे ॥ प्रह उगमते सूर, ऋषनजी नेटो रे ॥ करि दक त्रिक आणंद पूर, पाप समेटो रे ॥ १२॥ जिहां ललितासर पाल, नमी प्रनु पगला रे॥ सुगरत्नणं। उजमाल, जरिये डगला रे ॥ वचमां नूखण वाव्य, जोश्ने चा खो रे ॥ तुमे गुण गातां शुन जाव, साथे माहलो रे ॥ १३ ॥ तुमे धूपघटी करमांहि, जूला देतां रे ॥ व मनी बायामांहि, ताली लेता रे ॥ श्रावी तलेटी ग ण, तनु शुचि करिये रे ॥ पूरव रीत प्रमाण, पढी परवरिये रे ॥ १४ ॥ण परे तीरथमाला, नावे नण शे रे ॥ जिणे दी नयण निहाल, विशेषे सुणशे रे ॥ पेशे मंगलमाल, कंठे जे धरशे रे ॥ वली सुख संपत्ति सुविशाल, महोदय वरशे रे ॥ १५ ॥ तपगड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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