Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 79
________________ (१६) जरतें गणधर घर तेमीया, शांतिक पुष्टिक सहु तिहां किया ॥ ७ ॥ कंकोतरी मूकी सहु देश, जरतें तेड्यो संघ शेष ॥ आव्यो संघ अयोध्या, पुरी, प्रथम तीर्थ कर यात्रा करी ॥ ८ ॥ संघनति कीधी अति घणी, संघ चलायो शत्रुंजय जणी || गणधर बाहुबली केवली मुनिवर कोमी साधें लिया वली ॥ ए ॥ चक्रवर्तीनी सघली रुद्धि, जरतें साथै लीधी सिद्धि ॥ हय गय रम पायक परिवार, ते तो कहेतां नावे पार ॥ १० ॥ नर तेश्वर संघवी कहेवाय, मार्गे चैत्य उद्धरतो जाय ॥ संघ व्यो शत्रुंजय पास, सहूनी पूगी मननी आश ॥ ११ ॥ नय निरख्यो शत्रुंजो राय, मणी माणिक मोतीशुं वधाय ॥ तिलें में रही महोत्सव कीयो, जरतें आणंदपुर वासीयो ॥ १२ ॥ संघ शत्रुंजय उपर चड्यो, फरसंतां पातक उमपड्यो ॥ केवलज्ञानी पगलां तिहां, प्रणम्यां रायण रूख बे जिहां ॥ १३ ॥ केवलज्ञानी स्नात्र निमित्त, ईशानेंद्रे आणी सुपवित्त ॥ नदी शत्रुंजी सोहामणी, जरतें दीठी कौतुक जणी ॥ १४ ॥ गणधर देव तणे उपदेश, इंद्रे वल ! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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