Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 78
________________ (७५) याली ने उवयाली, प्रमुख साधुनी कोमी रे ॥ साधुनंता शत्रुजे सिझा, प्रणमुंबे कर जोमी रे ॥श॥१ ॥ढाल त्रीजी ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ शत्रुजाना कहुं शोल उझार, ते सुणजो सहुको सुविचार ॥ सुणतां आनंद अंग न माय, जन्म जन्मनां पातक जाय ॥१॥ ऋषनदेव अयोध्या पुरी, समोसरथा सामी हित करी ॥ नरत गयो वंदनने काज, ए उपदेश दीयो जिनराज ॥२॥ जगमा महोटो अरिहंत देव, चोशठ इंच करे जसु सेव ॥ तेहथी महोटो संघ कहाय, जेहने प्रणमे जिनवर राय ॥३॥ तेहथी महोटो संघवी कह्यो, जरत सुणीने मन गहगह्यो ॥ नरत कहे ते किम पामीयें, प्रनु कहे शत्रुज याना किये ॥४॥ नरत कहे संघवी पद मुऊ, ते आपो हूं अंगज तुऊ ॥ इंद्रे आण्या अक्षत वास, प्रनु आपे संघवी पद तास ॥५॥ इंद्रे तेणी वेला तत्काल, नरत सुनद्रा बेहुने माल ॥ पहेरावी घर संप्रेमीया, सखर सोनाना रथ आपिया ॥६॥ शेषनदेवनी प्रतिमा वली, रत्न तणी कीधी मन रली॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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