Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 76
________________ ( ७३ ) जोयण त्रीजे खरे, पहोलो तीरथराय ॥ शोल योजन ऊंचो सही, ध्यान धरूं चित्त लाय ॥ ३ ॥ पच्चास जोयण पहोलपणे, चोथे अरे मकार ॥ जंचो दश जोयण अचल, नित्य प्रणमे जोयणाचल, नरनार ॥ ४ ॥ बार योजन पंचम अरे, मूल तो विस्तार ॥ दोय जोयण उंचो कह्यो, शत्रुंज तीरथ सार ॥ ५ ॥ सात हाथ अरे, पहोलो पर्वत एह || उंचो होशे सो धनुष, शाश्वतुं तीरथ एह ॥ ६॥ ॥ ढाल बीजी ॥ जिनवरशुं मेरो मन लीनो ॥ ॥ ए देशी ॥ राग आशावरी ॥ ॥ केवलज्ञानी प्रथम तीर्थकर, अनंत सिद्धा इ वाम रे ॥ अनंत वली सिद्धसे इण वामें, तिणें करूं नित्य प्रणाम रे ॥ १ ॥ शत्रुंजे साधु अनंता सिद्धा, सिकशे वलीयी अनंत रे || जेणें शत्रुंज तीरथ नहिं नेट्यो, ते गर्जावास लहंत रे ॥ श० ॥ २ ॥ फागुण शुदि श्रामने दिवसें, षनदेव सुखकार रे ॥ रायण रूख समोसरचा स्वामी, पूरत नवाणुं वार रे ॥ श० ॥ ३ ॥ जरत पुत्र चैत्री पूनम दिन, इस शत्रुंजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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