Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ गिरि महिमा, आगममां परसिक ॥ विलाचल नेटी, लहियें अविचस इङि॥ पंचमी गति पहोता, मुनि वर कोमाकोमि ॥ इण तीरथ आवी, कर्मविपाक वि बोमा ॥३॥ श्रीशजयगिरि, अहोनिश रक्षा कारी॥ श्रीयादिजिनेश्वर, आण हृदयमां धारी ॥ श्रीसंघवघ्नहरः कविम्यद नरपूर ॥ श्रीसंघनां संकट, रवि बुध सागर चूर ॥४॥ इति ॥ ॥अथ श्रीशजयस्तुतिः॥ ॥ श्रीशत्रुजय गिरि तीरथ सार, गिरिवरमांदे जेम मेरु उदार, गकुर राम अपार ॥ मंत्रमांहे नव कारज जाणुं, तारामांहे जेम चंद्र वखाएं, जलधर मांहे जल जाणुं ॥ पंखीमांहे जेम उत्तम हंस, कुल माहे जेम झषननो वंश, नानि तणो जे अंश ।। द मावंतमाहे जेम अरिहंता, तपःशूरा मुनिवर महंता, शत्रुजय मिार गुणवंता ॥ १॥षन (जत संन व अनिनंदा, सुमति नाथ मुख पूनमचंदा, पद्मप्रन सुखकंदा ॥ श्रीसुपार्श्व चंद्रप्रन सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो बहुबुद्धि, वासुपूज्य मति शुद्धि ॥ वि. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106