Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
__ (६७) ॥ सिरी सिझसेहर, सिझपव सिझरा अ॥१॥ बाहुबली मरुदेवो, नगीरहो सहसपत्त सयवत्तो ॥ कूम सयहत्तर, नगाहिरा सहस्सकमलो ॥२॥ ढंको कमिनिवासो, लोहिच्चो ताबुल कयंबुत्ति ॥ सुरलर मुणिकय नामो, सो विमल गिरि जयउ तिहं ॥३॥ अर्थः-१ प्रथम जेने वांदवाथी, फरसवाथी, प्रजवाथी तथा गुणस्तुति करवायी, जीव कर्ममल रहित थाय विमल थाय तेथी ए तीर्थy नाम विमल गिरि जाणवू.
श्रीनरतचक्रवर्तीथी उ पाट आरीशा जुवनमां के वल झान पामी मोक्ष पद पामशे माटे मुक्तिनिलय नाम
३ जितारि राजा, ए तीर्थ सेवी ॥मास आयंबिल तप करी शत्रुने जीतशे माटें शत्रुजय नाम जाणवू.
४ ए तीर्थ उपरे कांकरे कांकरे अनंता जीव सिकि वरया ,माटे (सिखित्त के) सिहदेव नाम जाणवू. ___५ हे पुंमरिकगधर ॥ तमे चैत्रशुदि पूनमने दिवसें. पांच कोमी मुनियो सहित सिछि पामशो अथवा सर्व तीर्थरूप कमलमां घुमरिक कमल समान सर्वोत्तम ए तीर्थ डे माटे एनुं मुमरिकगिरी नाम जाणवू.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106