Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 67
________________ (६४) अनिधान ॥ सोहम इंदोरे, तव पूढे बहु मान ॥ किम थयुं स्वामी रे, नांखो तास निदान ॥ वीर ॥१॥ प्रजुजी नाखे सांजल इंद, प्रथम जे हुआ रुषन जिणं द ॥ तेहना पुत्र ते नरत नरिंद, जरतना हुआ रे ष नसेन पुंमरिक ॥षनजी पासें रे, देशना सुणी तहकोक ॥ दीदा लीधी रे, त्रिपदी ज्ञान अधिक ॥वी॥ ॥॥ गणधर पदवी पाम्या जाम, छांदशांगी गुंथी अन्तिराम ॥ विशरे महियलमां गुण धाम, अनुक्रमें आव्यो रे, श्रीसिझाचल सार ॥ मुनिवर कोमी रे, पंच तणे परिवार॥अनशन काधु रे; निज आतमने उपगार ॥ वीर ॥३॥ चैत्री पूनम दिवसें एह; पाम्या केव ल ज्ञान अलेह ॥ शिव सुख वरिया अमल अदेह, पूर्णानंदी रे, अगुरु लघु अवगाह ॥ अज अविनासी रे, निजगुण जोगी अबाह ॥ निज पुण करता रे, पर पुल नहिं चाह ॥ वीर ॥ ४ ॥ तेणे प्रगट्यो पुंग रिकगिरि नाम, सांबलो सोहम देवलोक स्वाम ॥ एहनो महिमा अतिहि उदाम, इणे दिन कीजेंरे, तप जप पूजा ने दान ॥ व्रत वली पोसो रे, जेह करे नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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