Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 65
________________ (६५) दिजिनेश्वरं ॥१॥ विमल गिरिवर, श्रृंग मंगन, प्रवर गुणगण, नूधरं ॥ सुर असुर किन्नर, कोमि सेवित ॥ नमो ॥२॥ करति नाटिक, किन्नरीगण, गाय जिन गुण, मनहरं ॥ निर्जरावलि नमे अहनिश ॥ नमो ॥३॥ पुंमरिक गणपति, सिद्धि साधी, कोमी पण मुनि, मनहरं ॥ श्री विमल गिरिवर,श्रृंगसिद्धा ॥ न मो० ॥ ४॥ निज साध्य साधन, सुर मुनिवर, कोमी नंत ए, गिरिमरं ॥ मुक्ति रमणी, वरया रंगे॥नमो॥ ॥५॥ दाताल नर सुर, लोकमांहे, विमल गिरिवर तो परं ॥ नहिं अधिक तीरथ, तीर्थपति कहे ॥नमो० ॥६॥ एम विमल गिरिवर, शिखर मंगण, मुःखविहं मण, ध्याश्ये ॥ निजशुद्ध सत्ता, साधनार्थ, परम ज्यो तिने, पाश्ये ॥ ७॥ जित मोह कोह, विडोह निखा, परमपदस्थित, जयकरं ॥ गिगराज सेवा, करण तत्पर, पद्मविजय, सुहितकरं ॥ ७ ॥ इति ॥ १॥ ॥अथ द्वितीय चैत्यवंदनं ॥ ॥ सिकाचल शिखरे चढो, ध्यान धरो जगदीश मन वच काय एकाग्रशुं, नाम जपो एकवीश ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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