Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 63
________________ (६०) परदारा लंपटी, चोरीना करनार ॥ देवद्रव्य गुरु द्रव्य ना, जे वली चोरणदार ॥२५॥ चैत्री कार्तिक पूनमें, करे यात्रा इण गम ॥ तप तपतां पातक गले, तिणे दृढशक्ति नाम ॥२६॥ सिझा ॥१२॥ १३ नवनय पामी नीकल्या, थावच्चासुत जेह ॥ सहस्स मुनिशुं शिव वरया, मुक्ति निलयगिरि तेह ॥ ॥२७॥ सिझा ॥ १३॥ १४ चंदा रज बिहुँ जणा उन्ना इणे गिरिशृंग ॥ करी वर्णवने वधावियो, पुष्पदंत गिरिरंग ॥श्णा सि॥ १५ कर्मकलण नवजल तजी, श्हां पाम्या शिवस द्म ॥प्राणी पद्मनिरंजनी, वंदोगिरि महापद्माणासि॥ १६ शिववहू विवाह उत्सवें, मंझप रचियो सार ॥ मुनिवर वर बेठक जणी, पृथ्वीपीठ मनोहार ॥३॥सि १७ श्रीसुन गिरि नमो, नऊ ते मंगलरूप ॥ जल तरु रज गिरिवर तणी, शीश चढावे नूप॥ ३१ ॥सि॥ १७ विद्याधर सुर अप्सरा, नदी शत्रुजी विलास ॥ करता हता पापने, नजीये नवि कैलास ॥३॥ सि॥ १ए बीजा निर्वाणी प्रजु, गश् चोवीशी मकार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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