Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६१) तस गणधर मुनिमा वमा, नामे कदंब अणगार ॥२३॥ प्रनु वचनें अणसण करी, मुक्ति पुरीमा वास ॥ नामें कंदगिरि नमो, तो होय लील विलास ॥३४ ॥ सि॥
२० पाताले जस मूल डे, उज्ज्वल गिरिनुं सार ॥ त्रिकरण योगें वंदतां, अल्प होय संसार ॥३५॥ सि०॥
२१ तन मन धन सुत ववना, स्वर्गादिक सुख जोग॥ जे वंडे ते संपजे, शिवरमणी संयोग ॥ ३६ ॥ विमलाचल परमेष्ठीजें, ध्यान धरे खट मास ॥ तेज अपूरव विस्तरे, पूगे सघली आश ॥ ३६ ॥ त्रीजे नव सिफिलहे, ए पण प्रायिक वाच ॥ उत्कृष्टा परिणा मयी, अंतर मुहरत साच ॥३७॥ सर्व कामदायक नमो, नाम करी उलखाण ॥ श्रीशुनवीरविज प्रन, नमतां कोमि कल्याण ॥ ३५ ॥ सिझा ॥१॥ इति श्रीसिहाचलनां एकवीश नाम आश्रयी एकवीश गुणना खमासमण संबंधी दोहा समाप्त ॥
॥अथ सिझाचल चैत्यवंदनं ॥ ॥ विमल केवल, ज्ञान कमला, कलित त्रिभुवन हितकरं ॥ सुरराज संस्तुत, चरण पंकज, नमोबा
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