Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 59
________________ (५६) गयण दिणंद, रूपेंबाजे रे ॥ श्रीविजयदेव सूरिंद, अधिक दिवाजे रे ॥ रत्न विजय तस शिष्य, पंमित राया रे ॥ गुरुराज विवेक जगीश, तास पसाया रे ॥ १६ ॥ कीधो ऐह अन्योस, अढार चालीशे रे ॥ उज्ज्वल फागुण मास; तेरश दिवसे रे ॥ श्रीविमला चल चित्त, धरी गुण गाया रे ॥ कहे अभृत नवियण नित्य, नमो (गरिराया रे ॥ १७ ॥ कलश ॥ श्म तीर्थ माला, गुण विशाला, विमल गिरिवर, राजनी ॥ कही स्वपरहेते, पुण्य संकेते, एह जिनघर, साजनी ॥ तप गह गयण, दिणंद गणधर, विजय जिणंद, सूरीश्वरू॥ रचि तास राजे, पुण्यसाजे, अमृत रंग, सुहंकरू ॥१॥ इति श्री विमलाचलतीर्थमाला संपूर्णा ॥ ____ए तीर्थमाला करया पली प्रेमचंद मोदीनी टुंक, हेमावसही, मोतीशा शेग्नी अंजनशिला का सहित तेमनी टुंक, बालाजाश्नी टुंक,केशवजी नायकना अं जन शिलाका सहित देरासरादिक, जे कांइ ए तीर्थमा लानी रचना थया पली नवा जिनालय थया ले ते स वनी यात्रालु सजनोये यात्रा करवी, ए विनति बे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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