Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 57
________________ (५४) कोल, नमणना रसगुं रे ॥ पूजे इंद्र अमोल, रयण पमिमाने रे ॥ ते जल आँख कपोल, वो शिर गमें रे ॥५॥ आगल देहरी दोय, समीपे जा रे ॥ तिहां प्रतिमा पगलां दोय, नमि गुण गा रे ॥ वली चिक्षणातलावकी देख, मनमां धारूं रे ॥ तिहां सिइशिला संपेखि, गुण संना रे ॥६॥ नामवे जवि यणवंद, आपण जाशुं रे ॥ जे थानकें अतीत जिणंद, रह्या चोमासु रे ॥ जिहां सांब प्रद्युम्न मुनिरंग, थया अविनाशी रे ॥ ते धन्य कृतारथ पुण्य, थुणे गुण राशि रे ॥ ७ ॥ हूं तो सिझवस पगला साथ, नमुं हित काजें रे॥ इहां शिवसुख की, हाथ, बहु मुनिरा जे रे ॥ श्म चढतां चारे पाज, चगति वारे रे ॥ ए तीरथ जग जहाज, नवजल तारे रे ॥७॥ जे जग तीरथ संत, ते सहु करिये रे ॥ पण ए गिरि नेटे अनंत, गणुं फल वरिये रे ॥ पुंमरिकादिक नाम, एकवीश लीजें रे ॥ जिम मनोवांबित काम, सघलां सीके रे ॥॥ करिये पंच स्नात्र, रायण आदें रे ॥ तिम रूमी रथयात्र, प्रनु प्रसादें रे ॥ वली नवाणुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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