Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ (५३) राज ॥ आग ॥ए॥ ॥ ढाल दशमी ॥ मुने संनवजिनशुं प्रीत, अवि हम लागी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ तुमें सिकगिरिनां बेहु टूक, जोर जूहारो रे ॥ तुमें जुल आदिनी मूक, ए लव थारो रे ॥ तुमें धर्मी जीव संघात, परिणति रंगें रे ॥ तुमें करजो तीरथ यात्र, सुविहित संगे रे ॥१॥ वावरजो एक वार, सचित्त सहु टालो रे ॥ करी पमिकमणां दोश् वार, पाप पखालो रे ॥ तुमें धरजो शील श्रृंगार, नूमि संथारो रे ॥ अणवाणे पाय संचार, व्हरि पालो रे ॥ ॥२॥ श्म सुणी आगम रीत, हियडे धरजो रे ॥ करी सद्दहणा प्रतीत, तीरथ करजो रे ॥ ा झूषम कालें जोय, विघन घणेरां रे ॥ कीधुं ते सीधुं सोय, शुं सवेरां रे ॥३॥ ए हितशीदा जाण, सुगुणा हरखो रे ॥ वली तीरथनां अहिठाण, यागें निरखो रे॥ देवकीना खट नंद, नमी अनुसरियें रे॥बातम शक्ते अमंद, प्रदक्षिणा करिये रे ॥४: पहेली उल खाजोल, नरी ते जलशुं रे ॥ जाणे केशरना ऊब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106