Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 54
________________ (५१) तेहमा चोवीश वटा साथें, एकशो साठ जगीश ॥ ॥ एहने ॥ ए ॥ पोल बाहेर मरुदेवी टुंके, चोमुख एक प्रसिझो रे ॥ धनवेलबाश्ये निज धन खरची, नरजव सफलो कीधो ॥ एहने ॥ १० ॥ पश्चिमने मुखसाहमा शोहे, देवलमां मनोहारी रे ॥ गजवर खंधे बेगं श्राइ, तीरथनां अधिकारी ॥ एहने ॥११॥ संप्रतिरायें नुवन कराव्युं, उत्तर सन्मुख सोहेरे ॥ तेह मा चिरानंदन निरखी, कहे अमृत मन मोहे ॥१२॥ ॥ ढाल नवमी ॥ आठ कूवा नव वावमी, हुं शे मिदे खण जाऊं महाराज, दधिनो दाणी कानूमो॥ ए देशी॥ ॥हवे बीपावसहीमां वहाला, हारे तुमे चालो चेतन लाला राज ॥ आज सफल दिन ए रूमो ॥ ए आंकणी ॥ जिनमंदिर जिन मूरति बेटो, नव नवनां पातक मेटो राज ॥ आज ॥१॥ तिहां पांच गंजारे जर अटकलिया, मानुं पांच परमेष्ठी मलिया राज ॥ आ० ॥ रायणतले पगलां सुखदायी, तिहां षन प्रजुने गाई राज ॥ आ॥२॥ नेमि जिनेश्वर शिष्य प्रवीणा, मुनि नंदिषेण नगीना राज ॥ आ॥ श्रीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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