Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ (४५) वि० ॥ बुध अमृत नर गुण गाय ॥ न ॥ १५ ॥ ॥ ढाल ही ॥ नवि तुमें वंदो रे, शंखेश्वर जिनराया ॥ ए देशो ॥ ॥ नवि तुमें सेवो रे, जिनवर उपगारी॥ को नहिं एहवो रे, तीरथमां अधिकारी ॥ ए आंकणी ॥ हाथी पोलथी उत्तरश्रेणें, जिनघर जिनजी बाजे ॥ समव सरण सुंदर ने तेहमां, प्रतिमा चार विराजे ॥ नवि० ॥१॥ समवसरण पळवाडे देहरी, थाह अनोपम सोहे ॥ वीश जिनेसर तेहमां बेठ, नवियणनां मन मोहे ॥ नवि० ॥२॥ रत्नसिंह मारी जेणे, कीधुं देवल खास ॥ तिहां जिन चार संघातें थाप्या, विजय चिंतामणि पास ॥ नविण ॥३॥ तेहनी पालें चार ले देहरी, तिहां जिनपमिमा वीश ॥ प्रेमजी वेलजी शा हने देहरे, प्रणमुं पांच जगीश ॥ नवि० ॥४॥ नथ मल आणंदजीयें कीधं, जिनमंदिर सुविशाल ॥ तिहां जश् पांच जिनेसर नेटे, मेटे नवजंजाल ॥ नविण ॥ ५॥ वधुशा पटणीने देहरे, अष्टादश जिनराया ॥ पासें देहरी चिना बिंबनी, देश बंगाल कहाया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106