Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 49
________________ (४६) जवि ॥ ६॥ अति अञ्जत जिनमंदिर रूहुँ, लाधा वहोरा केरुं ॥ तेहमां जे षट् प्रतिमा वंदे, तेहy नाग्य नलेलं ॥ नविण ॥७॥शा मीठाचंद लाधा जा [, पाटण शहेरना वासी ॥ जिनमंदिर सुंदर करि पमिमा, पांच बी डे खासी ॥ नविण ॥॥ मुणोत जयमबजीने देहरे, चोमुख जश्ने जुहारं ॥ प्रतिमा दोय दिगंबर जुवनें, निरखी नांवू साऊं ॥ नवि० ॥ ॥ ए ॥ षन मोदीयें प्रासाद कराव्यो, तिहां दश पमिमा वंदो ॥ राजसी शाहनां देहरामांहे, नेव्या शांति जिणंदो ॥ नविः ॥१॥ तिरथ संघ तणो रख बालो, यद कपर्दी कहियें ॥ बीजी मात चक्केसरी वंदी, सुख संपत्ति सहु लहियें ॥ नविण ॥ ११ ॥ न्हानां महोटां जुवन मलीने, बहेंतालीश अवधारो ॥ संख्यायें जिनजीनी पमिमा, पांचशे शोल जुहारो॥ जरिव ॥ १५ ॥णीपरें सघलां चैत्य नमीने, नाही सूरजकुंम ॥ जयणायें शुचि अंग करीने, पहेरो वस्त्र अखंम् ॥ नवि० ॥ १३ ॥ विधिपूर्वक सामग्री मेली, बहु उपचार संघातें ॥ नाजिनंदन पूजी सहु पूजो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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