Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 44
________________ (४१) दो जी॥ मु॥नमि विनमी काउस्सग्गिया सामा जी॥ ती॥ब्राह्मी सुंदरी एक देहरीमा जी॥ मु॥२॥पद कृष्ण शुकल ब्रह्मचारी जी॥ती॥शेष विजय ने विजया नारी जी ॥ मु०॥ एहवा कोइ न हया अवता री जी॥ ती ॥ जालं तेहनी हूं बलिहारी जी॥मु॥ ३॥ गड अंचल चैत्य कहावे जी ॥ तो ॥ वीशपमिमा वंडू जावें जी ॥ मु०॥ तस मंगप थला मांहिजी ॥ती० ॥ चौद पमिमा वंदू त्यांहि जी॥मु॥॥ नूषण दासनां देहरामांहे जी॥ती।। तेर पमिमा थापी जसाहें जी ॥मु॥ वारमा मंगल खंनाती जी ॥ती॥ तस चैत्यमांत्रण्य सोहाती जी ॥ मु० ॥५॥ शाकर बाश्नी देहरीयें वंदो जी ॥ती॥ सात प्रतिमा निरखी आणंदो जी॥ मु० ॥ तिहांयी वली यागल चालो जी ॥ ती० ॥ माता विसोतनुं देहरुं नालो जी।मु०॥ ॥६॥ पण ते वस्तुपाले कराव्युं जी ॥ ती॥ आठ प्रतिमाये सोहाव्युं जी ॥ मु० ॥ ते उपर चोमुख राजे जी ॥ ती० ॥ चार शाश्वता जिन बिराजे जी॥मु॥ ॥७॥ जगमणी बेले देहरी जी॥ती॥ जितपमिमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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