Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( ३३ ) विजय, कहे निसुणो देव ॥ जव जव शत्रुंजा गिरितणी ए, मुऊ देजो सेव ॥ २२ ॥
॥ कलश ॥ इम मुल्यो स्वामी, मुक्तिगामी, आदिजिन जगदेव ए ॥ नित्य नमे सुर नर, असुर व्यंतर, करे - होनिश, सेव ए॥ जे नणे जगतें, जली युक्त, तस घर जयजय, कार ए ॥ कहे कवियण, सुणो जवियण, जिम पामो, जर पार ए ॥ २३ ॥ इति श्री शत्रुंजय स्तवनं ॥
॥ अथ ॥
॥ श्री अमृत विजयजीकृत श्री शत्रुंजय तीर्थमालाप्रारंभ; ॥
॥ ढाल पहेली ॥ गरबानी देशीमां ॥ जगजीवन जालम यादवा रे, तुमें शाने रोको बो रानमां ॥ तुमें सघले कहेवार्ड बो माधवा रे ॥ तुमें० ॥ ए देशी बे ॥
|| विमलाचल विमला बारू रे, जलें जवियण नेटो जावमां ॥ तुमें सेवो ए तीरथ तारु रे, जिम न पमो जवना दावमां || जलें० ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ जग सघला तीरथनो नायक, हारे तुमें सेवो शिवसुख दायक
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/09c77ed6efdab0ea4edf3fdc4e2f066212ae40e2061223008ea7aa23a19bf14e.jpg)
Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106