Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 35
________________ (३२) सिद्धरस कूपिका ए, चोखा फिटकनी खाण ॥ चार पाज शत्रुजे चढी ए, कीजें कर्मनी हाण ॥ नीली धोली पर्व बेहु, होवे तेहिज नाम ॥ संघ यात्र, करी तिहां मले ए, वीशामा ठगम ॥१७॥ आदिपुरं रलियाम', दीगं पापज नासे ॥ शत्रुजी लली नदी वहे, शत्रुजेगिरि पासें ॥ इंद्रपुरी समोवडे ए, पालीताणुं नयर ॥ उत्तंग प्रासाद जिहां जिनो तणां, दीठे नासे वयर ॥१॥ मानसरोवर समवमें ए, ललितासर सोहे ॥ वनवाडी आराम गमा इंद्रादिक मोहे ॥ शत्रुजो शिवपुर समोवमें ए, ज्ञानी श्म बोले ॥ त्रिजुवनमांहे तीरथ नहिं ए, शजा गिरि तोले ॥२०॥ ए तीरथ संख्या में कही ए, शत्रुजय गिरि केरी ॥ जे नर नारी नणे गुणे ए, तस टाले नव फेरी ॥ संकट विकट सवि टले ए, शत्रुजय गिरिनामें ॥ सकल कर्मनो क्ष्य करी ए, ते शिवपुर पामे ॥ १ ॥ तपगबनायक गुणनि सो ए, गुरु हीरजी राया ॥ मनमोहन विजयसेन सूरि, तेहना प्रणमुं पाया ॥ विमलहरख शिष्यः प्रेम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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