Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(३१) नरनारी सहु तणुं ए, दीठे मन मोहे ॥ त्रण कोट अति मनोहरु ए, जाणे त्रिग दीसे ॥ खरतरवसही माहे जला ए, जोतां मनहुं हीसे ॥ १३ ॥ पांच मूरति पांव तणी ए, जोतां अनिराम ॥ चौमुख प्रतिमा शोमती ए, सुर करे गुणग्राम ॥ ऊलखा जोल चेलणा तलावमी ए, सिझशिला तिहां रूमी ॥ सिझवा सिझतणुं गम ए, नहिं वातज कूमी ॥१४॥
आदीश्वरनी मूल प्रतिमां, जरतेश्वरें कीधी ॥ पाचशं धनुषनी रत्नमय, करी मुक्तिज लीधी ॥ ते प्रतिमा शत्रुजे अबे, पण कोइ न पेखे ॥ लव त्रीजे मुक्ति लहे, नर तेहीज देखे ॥१५॥ आदीश्वरने मूल देहरे पावमीयां बत्रीश ॥ नागमोरनां रूप देखी, नवि कीजें रीश ॥ रायण वम पीपल कहं ए, अांबलीय जगीश ॥ त्रण कोटमांहे महोटा ए, काम डे एकवीश ॥ १६ ॥ कोट देहरानां कांगरां ए, बारशें बाशठ ॥ थंन अग्यारशे में गएया ए, उपर पांश: ॥ श्सर कुंम ने नीमकुंभ, जुजकुंम वखाणुं ॥ खोमीयारकुंभ शिलार कुंम, तेहनो पार न जाणुं ॥१७॥ सोवन
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/3044320cde63683dbce8f3574016a9c4cd23406164d7a8ad5a7ba97ebc39b3a1.jpg)
Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106