Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ए) पार उतारे ॥ चालोने शत्रुजे जायें ए, हरखें कीजें जात्र ॥ सूरजकुंमें स्नान करी, कीजें निर्मल गात्र ।३॥ खीरोदक सम धोतीयां ए, उढण बादर चीर ॥ कनककलश साथें लश्, जरीय निर्मल नीर ॥ बावना चंदन घही घणुं ए, कचोलां जरीयें ॥ युगा दिदेव पूजा करी ए, नवसायर तरीयें ॥ ४ ॥ चंपक केतकी मालती ए, मांदे दमणो सोहे ॥ कुसुममाल कंठे उवा ए, नवियण मन मोहे ॥ कर जोमीने वीनवु ए, सुणो स्वामी वात ॥ धर्मविना नर जव गयो ए, नवि जाण्यो जात ॥ ५॥ काम क्रोध मद लोन वशे, जे में कीधां पाप ॥ प्रेम घरीने मुक्ति यो, आदीश्वर बाप ॥ शांतिनाथ मरुदेवी जुवन, बेहु जमणां सोहे ॥ आगल अत वंदतां ए, नवि जन मन मोहे ॥६॥ परव एक वमहेठ अडे, पास पांच देहरी । ऊ थंन आगे निरखतां ए, टाले नव फेरी ॥ कुंतासर कोमें करी ए, ललिता सर जोम॥ नीर विना शोने नहीं ए, एतो महोटी खोम ॥७॥ते आगल रामपोल बे, दीसे अनि राम ॥ पासे वाघण तप तपे
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