Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 33
________________ ( ३० ) ए, तस सीधां काम ॥ खरतर वसहीने विमलवसही, बेहु पहिली यादीश्वर देखो ॥ ८ ॥ माबेपासें, जिमणे पार्से, प्रतिमा अति दीपे ॥ पुंमरिक बिंब अति जनुं ए, रूपें त्रिभुवन कीपे ॥ महोटी प्रदक्षिया देहरे ए, एकसो एक जाएं ॥ तेम नान्ही हरखें कहुं ए, पच्चास वखाएं ॥ ए ॥ कवक यक्ष गोमुख जलाए, चक्केंसरी देवी ॥ शत्रुंजय सान्निध करे ए, संघ विघ्न हरेवी ॥ रायण देवें पगलां अबे, दीश्वर केरां ॥ जावें जवि पूजा करो ए, टालो जव फेरा ॥ १० ॥ शशत्रुंजय बिंब संख्या सुपो ए, पन्नरों ने पांस ॥ न्हानां महोटां देहरां देहरी, त्र बारा ॥ सीत्तरिसय जिनवर तथा ए. रूप पाटीयें दीसे ॥ खरतरवसहीमां पेसतां ए, जोतां मन ह्रींसे ॥ ११ ॥ एकावन उरसा जलाए, जेणे सुखम घसीयें ॥ यदिदेव पूजा करी ए, ज‍ शिवपुर वसीयें ॥ देहरा उपर गोमटी ए, संख्या सुणो वात ॥ एकसो एकशठ में गणी ए, मूकी परनी तांत ॥ १२ ॥ जिन जुवन शिर उपरें ए पांच चोमुख शोहे ॥ सुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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