Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२३) घणा, इण गिरि पहोता मोद ॥ते॥ टाड्या घातिक दोष ॥ ५० ॥ राम जरत बिहुं बांधवा, त्रण कोमी मुनियुत ॥ ते ॥णे गिरि शिव संपत्त ॥५१॥ नारद मुनिवर निर्मलो, साधु एका| लाख ॥ ते० ॥ प्रवचन प्रगट ए नांख ॥ ५५ ॥ सांब प्रद्युम्न ऋषि कह्या, सामी आठे कोमि॥ ते ॥ पूर्वकर्म विहोमि ॥५३॥ थावचासुत सहसशु, अणसण रंगे कीध ॥ ते॥ वेगें शिवपद लीध ॥ ५५ ॥ शुक परमाचारज वली, एक सहस अणगार ॥ ते ॥ पाम्या शिवपुर हार ॥५५॥ शैले सूरि मुनि पाचशे, सहित हुआ शिवनाह ॥ते॥ अंगें धरी उत्साह ॥५६॥ श्म बहु सिफाणे गिरें, कहेतां नावे पार ॥ते॥ शास्त्रमांहे अधिकार ॥२७॥ बीज यहां समकित तणुं, रोपे आतम जोम ॥ ते ॥ टाले पातक स्तोम ॥ ५० ॥ ब्रह्म स्त्री चुणगोहत्या, पा जारित जेह ॥ ते ॥ पहोता शिवपुर बेह ॥५॥ जग जोतां तीरथसवे, ए सम अवरन दी ते॥ तीर्थ मांहे उकिक ॥६० ॥ धन धन सोरठ देश जिहां, तीरथमांहे सार ॥ तेण ॥ जनपदमां शिरदार ॥ ६१ ॥
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