Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 25
________________ (२२) खपाय ॥ ते० ॥ गुण गुणि नाव लखाय ॥ ३० ॥ जेणे गिरि रूंख सोहामणा, कुंनें निर्मल नीर ॥ १० ॥ ऊतारे जवतीर ॥३॥ मुक्तिमंदिर सोपान सम, सुंदर गिरिवर पाज ॥ ते ॥ लहियें शिवपुर राज ॥ ४० ॥ कर्मकोटि अब विकटनट, देखी धुजे अंग ॥ ते ॥ दिन दिन चढते रंग॥४१॥गौरी गिरिवर उपरे, गावेजिनवर गीत ॥ ते ॥ सुखें शासनरीत ॥ ४२ ॥ कवम यद रखवाल जस, अहोनिश रहे हजूर ॥ ते ॥ असुरां राखे दूर ॥४३॥ चित्त चातुरी चकेंसरी, बिघ्न विनासणहार ॥ ते ॥ संघ तणी करे सार ॥ ४४ ॥ सुरवरमा मघवा यथा, ग्रहगणमां जिम चंद ॥ ते॥तिम सविती रथ इंद ॥ ४५ ॥ दी। पुर्गति वारणो, समरयो सारे काज ॥ ते ॥ सवि तीरथ शिरताज ॥४६॥ पुंग रिक पंच कोमीशु, पाम्या केवल नाण ॥ ते ॥ कर्म तणी होय हाण ॥ ४ ॥ मुनिवर कोमी दश सहित, द्रविम अने वारिखेण ॥ ते० ॥ चाढिया शिव निश्रेण ॥४॥ नमि विनमि विद्याधरा, दोय कोमी मुनिसाथ ॥ ते ॥पाम्या शिवपुरे याथ ॥४॥षनवंशीय नरपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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