Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 23
________________ ( २० ) ॥ १४ ॥ जलचर खेचर तिरिय सवे, पाम्या आतम जाव || || नवजस तारण नाव ॥ १५ ॥ संघयात्रा जेणें करी, कीधा जेणें उद्धार || ते ॥ बेदीजें गति चार ||१६|| पुष्टिशुद्ध संवेग रस, जेहने ध्यानें थाय ॥ ते० ॥ मिथ्यामति सवि जाय ॥ १७ ॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवि, सुरघट सम जसध्याव || ते० ॥ प्रगटे शुद्ध स्वाव ॥ १८ ॥ सुरलोकें सुरसुंदरी, मलि मल थोकें थोक ॥ ते० ॥ गावे जेहना श्लोक ॥ १७ ॥ योगीश्वर जस दर्शनें, ध्यान समाधि लीन ॥ ते० ॥ हुआ अनु जव रस लीन ॥ २० ॥ मानुं गगनें सूर्य शशी, दिये प्रदक्षिणा नित्य || || महिमा देखण चित्त ॥ २१ ॥ सुरासुर नर किन्नरा, रहे बे जेहनी पास ॥ ते० ॥ पामे लील विलास ॥ २२ ॥ मंगलकारी जेहने, मृतका हरिनेट ॥ ० ॥ कुमति कदाग्रह मेट ||२३|| कुम ति कौशिक जेहने, देखी जांखा थाय ॥ ते० ॥ सवि तस महीमा गाय ॥ २४ ॥ सूरज कुंमना नीरथी, आ धि व्याधि पलाय ॥ ते० ॥ जस महिमा न कहाय ॥ २५ ॥ सुंदर टूक सोहामणी, मेरुसम प्रासाद ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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