Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ (१७) शिष्य तस पट जयकरु, गुरु गजपति रे अमररत्न सूरिंद के ॥ नेव्यो० ॥ १२ ॥ विजयमान तस पटधरू, श्री देवरत्न सूरीश ॥ श्री धनरत्न सूरीशना, शिष्य पंमित रे नानुमेरु गणीश के ॥नेट्योग ॥१३॥ तसपद कमल ज्रमर नणे, नयनसुंदर दे आशीष ॥ त्रिभुवन नायक सेवतां,हवे पूगी रे श्रीसंघजगीश के ॥ नेव्योग ॥१२॥ ॥ कलश ॥ श्म त्रिजग नायक, मुक्ति दायक, वि मल गिरि, मंमण धणी ॥ उद्धा शत्रुजय, सार गायो, थुएयो जिन, नक्तं घणी ॥ नानु मेरु पंमित, शिष्य दो य कर, जोमो कहे, नसुंदरो ॥ प्रजु पाय सेवा, नित्य करेवा, देह॥ दरिसन, जय करो ॥ १२५ ॥ इति ॥ श्री गौतमाय नमः॥ ॥ अथ श्रीसिगिरिस्तुतिप्रारंनः ॥ ॥ श्री आदीश्वर अजर अमर, अव्याबाध अह नीश ॥ परमातम परमेसरू, प्रणमुं परम मुनीश ॥१॥ जय जय जगपति ज्ञाननान, नासित लोकालोक ॥ शुद्धस्वरूप समाधिमय नमित सुरासुर थोक ॥२॥ श्रीसिकाचल मंमणो, नानिनरेसर नंद ॥ मिथ्यामति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106