Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७) ॥ ढाल बारमी ॥ वधावानी देशी ॥ ॥ मानव जव में जलें लह्यो, लह्यो ते आरज देश॥ श्रावक कुल लाधुं नबुं, जो पाम्यो रे वाहालो झषन जिनेश के ॥ ११५ ॥ नेट्यो रे गिरिराज, हवे सीधारेम हारां वांछित काज के, मुने जगे रे त्रिजुवनपति आज के॥नेट्यो॥११६॥ ए आंकणी॥धन्य धन्य वंश कुलगर तणो, धन्य धन्य नानिनरिंद ॥ धन्य धन्य मरुदेवामा वमी, जेणें जायो रे वहालो झषन जिणंद के॥ने॥११७ धन्यधन्य शत्रुजय तीरथ, रायण रूख धन्य धन्य॥धन्य पगला प्रज्जु तणां, जे पेखीरे मोद्यं मुफ मन के ॥२०॥ ११॥ धन्य धन्य ते जग जीवमा, जे रहे शत्रुजय पा साहो निश षन सेवा करे, वली पूजे रे मनने उवा स के॥ने ॥ ११ ॥ आज सखी मुऊ आंगणे, सुरतरु फलियो सार ॥षज जिनेसर वांदीयो, हवे तरियो रे जवजल निधि पार के॥नेट्यो ॥१२॥ शोल अमत्रीशे आशो मासे, शुदि तेरश कुज वार ॥ अहम्मदाबाद नयर माहे,में गायोरे शत्रुजय उझार केण्नेटयो॥११ वम तपगड गुरु गढपति, श्रधन्नरत्न सूरिंद ॥ तस
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