Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१५) एटला कंसारा कहीश ॥ ए ॥ सवि जिनमति जा व्या, श्री शत्रुजय यात्रायें याव्या ॥ अवरनी संख्या न जाणुं, पुस्तक दीठे ते वखाणुं ॥ ए ॥ सात सह स मेहर संघवी, जात्रा तलहटी तस हवी ॥ बहु श्रुत वचनें ए राचुं, ए सवि मानजो साधु ॥ एए ॥ जरत समराशाह अंतर, संघवी असंख्यात णी प र ॥ केवली विण कुण जाणे, किम उमस्थ वखाणे ॥ १०० ॥ नवलाख बंधी बंध काप्या, नवलाख हेम टका तस बाप्या ॥ तो देशलहमियें अन्न चाख्यु, समरेशाहें नाम राख्युं ॥ १०१ ॥ पन्नर सत्याशीये प्रधान, बादशाहें बहुमान ॥ करमेशाहें जस लीधो, उकार शोलमो कीधो ॥ १० ॥ण चोवीशीयें विमल गिरि, विमलवाहन नृप आदरी ॥ प्रसह गुरु उप देशे, उद्धार बेहलो करेशे॥ १०३ ॥ एम वली जे गु णवंत, तीरथ उकार महंत ॥ लक्ष्मी लही व्यय करशे, तस बहुजवकारज सरशे ।। १०४ ॥ ॥ ढाल अग्यारमी ॥ माश् धन्य सुपनतुं ॥
॥ ए देशी ॥ ॥ धन्य धन्य शत्रुजय गिरि, सिझक्षेत्र ए गम ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106