Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 16
________________ (१३) जगवंतनुं ध्यान रे ॥ कुंग ॥ २ ॥ माता शिखामण मन धरी, पांडव पांचे तास रे ॥ हत्या पातक बुटवा, पहोता विमल गिरि गम रे कुं० ॥ ३ ॥ जिनवर नक्ति पूजा करी, कीधो बारमो उझार रे ॥ जवन नि पायो काष्टमय, खेपमय, प्रतिमा सार रे ॥ कुं० ॥ ४ ॥ पांमव वीर विचं आंतर, वरस चोराशी सहस्त रे॥ चिहुंसय सीतेर वर्षे हुवो, वीरश्री विक्रम नरेश रे ॥५॥ .. ॥ ढाल नवमी ॥ पूर्वली देशी ॥ ॥धन्य धन्य शत्रुजय गिरिवरू, जिहां हुवा सिक अनंत रे ॥ वली होशे इणे तीरथे, श्म नांखे नगवंत रे ॥ धन्य० ॥ ६ ॥ विक्रमथी एकसो आवे, व रसे हून जावमशाह रे ॥ तेरमो उद्धार शत्रुजे क रयो, थाप्या आदिजिन नाह रे॥ धन्य० ॥ ७ ॥ प्रतिमां जरावी रंगशु, नवा श्री आदि जिणंद रे॥श्री शत्रुज शिखरेंथापिया, प्रासादें नयनानंद रे ।। धन्य ॥ ७ ॥ पांमव जावम अांतरे, पचवीश कोमी म याल रे ॥ लाख पंचाj ऊपरे, पंच्चोत्तर सहस्स नूपा ल रे ॥ धन्य ॥ नए ॥ एटला संघवी हया हवे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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