Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( ११ ) अजितनाथ चोमासुं रह्या ॥ ६७ ॥ जाइ पितराइ अजित जिन तणो, सगर नामें बीजो चक्रवर्त्ती जणो ॥ पुत्रमरण पाम्मो वैराग, इं प्रीबवियो महानाग ॥६८॥ इंद्रवचन दियको माहे धरी, पुत्रमरण चिंता परिहरी ॥ जरत तणीपरें संघवी थया, श्रीशत्रुंजय गिरियात्रा गयो ॥ ६० ॥ जरत मणिमय बिंब वि शाल, करयां कनक प्रासाद ऊमाल ॥ ते देखी मन हरख्यो घणुं, नाम संजारयुं पूर्वज तणु ॥ ७० ॥ जाणी पतो काल विशेष, रखे विनाश ऊपजे रेख ॥ सो वनगुफा पश्चिमदिशि जिहां, रयणबिंब जंमारयां तिहां ||११|| करी प्रासाद सयल रूपना, सोबन विंब करी थापना || करयो जितप्रासाद उदार, एंह स गर सत्तम उद्धार ॥ ७२ ॥ पच्चास कोमी पंचाएं लाख, उपर सहस पंच्चोत्तेर जांख ॥ एटला संघवी नूपति थया, सगर चक्रवर्त्ती वारें कह्या ॥ ७३ ॥ त्रीस कोमी दश लाख कोमी सार, सागर अंतर करे उद्धार ॥ व्यंतरेंद्र मो सुचंग, । जनंदन उपदेश उत्तंग ॥ ७४ ॥ वारे श्रीचंद्रप्रन तणे, चंद्रशेखर सुत
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/12cb2f3c24f477d41e5bbea7bf62f5685d844f6ee76fec8789c50f012ec6e8f4.jpg)
Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106