Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 27
________________ ( २४ ) हो। नश यावत ढुंकमा, ते पण जेहने संघ ॥०॥ पाम्या शिव वधू रंग ६२ ॥ विराधक जिएत्राणना, ते पण हुआ विशुद्ध ॥ ते० ॥ पाम्या निर्मल बुद्ध ॥ ६३ ॥ महाम्ले शासन रिपु, ते हुआ उपरांत ॥०॥ महिमा देखी अनंत ॥ ६४ ॥ मंत्र योग अंजन सवे, सिद्ध हुवे जिण ठाम ॥ ० ॥ पातकहारी नाम ॥ ६५ ॥ सुमति सुधारस वरसते, कर्मदावानल संत ॥ ते० ॥ उपशम तस उल्लसंत ॥ ६६ ॥ श्रुतधर नितु नितु उप दिशे, तत्त्वातत्त्व विचार || ते० ॥ ग्रहे गुणयुत श्रोता र ॥ ६७ ॥ प्रियमेलक गुणगण तपुं, कीर्त्तिकमला सिंधु ॥ ते० ॥ कलिकालें जगबंधु ॥ ६८ ॥ श्रीशांति तारणतरण, जेहनी नक्ति विशाल ॥ ते० ॥ दिन दिन मंगलमाल ॥ ६० ॥ श्वतध्वजा जस लड़कती, जांखे नविने एम ॥ ते० ॥ भ्रमण करो बो केम ॥ ७० ॥ साधक सिद्धदशा जणी, आराधे एक चित्त ॥ ते० ॥ साधन परम पवित्त ॥ ७१ ॥ संघपति थइ एहनी, जे करे जावें यात्र ॥ ते० ॥ तस होय निर्मल गात्र ॥ ७२ ॥ शुद्धतम गुण रमणता, प्रगटे जे हने संग ॥ ते० ॥ जेहनो जस अजंग ॥ ७३ ॥ www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only

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