Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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प्रतीष्टा करावी वीशाल ॥ यद गोमुख चकेसरी देवी, तीरथ रखवाल ग्वेवी ॥ ५४ ॥ इम प्रथम उझारज कीधो, जरतें त्रीजुवन जस लीधो ॥ इंसादीक कीर्ति बोले, नहीं कोश् नरत नृप तोले ॥५५॥ शत्रुजय महातममांहि, अधिकार जो जो उत्साहिं ॥ जिन प्रतिमा जिनवर सरखी, सदहो सूत्र नववा निर खी॥ ५६ ॥वस्तु ॥ नरतें कीधो लरतें कीधो, प्र थम उझार, त्रीजुवन कीर्ति विस्तरी ॥ चंद्रसूरज लगें नाम राख्यु, तिणे समय संघपति केटला हवा ॥ सो श्म शास्त्रे नांख्यु, कोमी नवाणुं नरवरा, हुआ नेव्याशी लाख ॥ जरतसमय संघपति वली, सहस चोराशी नांख ॥ ५॥
॥ ढाल सातमी ॥चोपाश्नी देशी ॥ ॥ जरतपाट हुया आदित्ययशा, तस पाटें तस सुत महायशा ॥ अतिबलना अने बलवीर्य, कीर्तिवीर्य अने जनवीर्य ॥ ॥ ए साते हुआ सरखी जोमि, जरतथकी गयां पूरव उ कोमि ॥ दंमवीर्य आठमें पाट हवो, तिणे उद्धार कराव्यो नवो ॥ ५॥ ॥ इंद्रे
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