Book Title: Shatrunjay Tirthmala Ras ane Uddharadikno Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 24
________________ ( १) ते ॥ दूर टसे विखवाद ॥ २६ ॥ द्रव्य नाव वैरी त णा, जिहां आवे होय शांत ॥ ते० ॥ जाये नवनी ब्रांत ॥ २७ ॥ जगहितकारी जिनवरा, आव्या एवं गम ॥ ते ॥ जस महिमा उद्दाम ॥ २० ॥ नदी श ध्रुजी स्नानश्री, मिथ्यामल धोवाय ॥ ते ॥ सवि जनने सुखदाय ॥ श्ए ॥ आठ कर्म जे सिझगिरें, न दीये तीव्र विपाक ॥ ते ॥ जिहां नवि आवे काक ॥३०॥ सिझशिला तपनीयमय, रत्नस्फाटिक खाण ॥ ते॥ पाम्या केवल नाण ॥३१॥ सोवन रूपा रत्ननी, औषधि जात अनेक ॥ ते ॥ न रहे पातक एक ॥ ३ ॥ संयमधारी संयमें, पावन होय जिण खेत्र ॥ ते॥ देवा निर्मल नेत्र ॥ ३३ ॥ श्रावक जिहां शुन द्रव्यश्री, उत्सव पूजा स्नात्र ॥ ते ॥ पोषे पात्र सुपात्र ॥३४॥ सहामिवत्सल पुण्य जिहां, अनंतगुणुं कहेवाय ॥ते॥ सोवन फूल वधाय ॥ ३५॥ सुंदर जात्रा जेहनी, देखी हरखे चित्त॥ते०॥ त्रिजुवनमांदे विदित्त ॥३६॥ पालीताणुं पुर जर्बु, सरोवर सुंदर पाल ॥ ते ॥ जाये सकल जंजाल ॥३७॥ मनमोहन पागे चढे, पग पग कर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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