Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
३०८
विषय-सूची
द्वितीय चूलिका ६२ इस चूलिकाके अन्तर्गत स्थितिबन्धाध्यवसायप्ररूपणामें जीवसमुदाहार, प्रकृति
समुदाहार और स्थितिसमुदाहार, इन तीन अनुयोगद्वारोंका निर्देश । ६३ प्रकृत चूलिकाकी अनावश्यकताविषयक शंका और उसका परिहार ।
(जीवसमुदाहार) ६४ ज्ञानावरणादि ध्रुवप्रकृतियोंके बन्धक जीवोंके साताबन्धक व असाताबन्धक इन दो मेदोंका निर्देश।
३११ ६५ साताबन्धकोंके ३ भेद ।
३१२ ६६ असाताबन्धकोंके ३ भेद ।
३१३ ६७ उक्त मेदोंमें सर्वविशुद्ध व संकिलिष्टतर अवस्थाओंका निर्देश ।
३१४ ६८ साताके चतुःस्थानबन्धकादिकोंमें तथा असाताके द्विस्थानबन्धकादिकोंमें जघन्य
स्थिति आदिके बंधनेका नियम । ६९ ज्ञानावरणादि ध्रुवप्रकृतियोंके स्थितिविशेषोंको आधार करके उनमें स्थित जीवोंकी
प्ररूपणा, प्रमाण, श्रेणि, अवहार, भागाभाग और अल्पबहुत्व इन ६ अनुयोगद्वारोंके द्वारा प्ररूपणा।
३२० ७० ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोगके द्वारा बंधने योग्य स्थितियोंका उल्लेख । ७१ छह यवोंके अधस्तन व उपरिम भागोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा।
३३४ ७२ साताके व असाताके चतुःस्थानादिबन्धकोंका अल्पबहुत्व ।
३४१ (प्रकृतिसमुदाहार) ७३ प्रकृतिसमुदाहारमें प्रमाणानुगम और अल्पबहुत्व इन दो अनुयोगद्वारोंका निर्देश
करके प्रमाणानुगमके द्वारा ज्ञानावरणादिके स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंकी प्रमाणप्ररूपणा। उक्त स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंका अल्पबहुत्व ।
३४७ (स्थितिसमुदाहार) स्थितिसमुदाहारमें प्रगणना, अनुकृष्टि और तीव्र-मन्दता इन ३ अनुयोगद्वारोंका निर्देश।
३४९ प्रगणना द्वारा ज्ञानावरणीयादि कर्मोंकी जघन्य स्थिति आदि सम्बन्धी स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंकी गणना।
३५० अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधाके द्वारा उक्त स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंकी
प्ररूपणा। ७८ श्रेणिप्ररूपणासे सूचित अवहार, भागाभाग और अल्पबहुत्वके द्वारा उपर्युक्त स्थानोंकी प्ररूपणा।
३५८ ७९ अनुकृष्टि द्वारा उक्त स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंकी समानता-असमानताका विचार । ३६२
तीव्र-मन्दता द्वारा उपर्युक्त स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानोंके अनुभाग सम्बन्धी तीव्रता व मन्दताका विचार।
३६६
३४६
७५
३५२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org