Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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षट्खंडागमकी प्रस्तावना पश्चात् प्रतिमें जो पांच छह कनाडीके कंद-वृत्त पद्य पाये जाते हैं, उनमें से एक शास्त्रीजीने पूरा उद्धृत करके भेजनेकी कृपा की है, जो इस प्रकार है
सकलधरित्रीविनुतप्रकटितयधीशे मल्लिकब्बे बरेसि सत्पुण्याकर-महाबंधद पु
स्तकं श्रीमाघनंदिमुनिगळि गित्तऴ् इस पद्यमें कहा गया है कि श्रीमती मल्लिकाम्बा देवीने इस सत्पुण्याकर महाबंधकी पुस्तकको लिखाकर श्रीमाघनन्दि मुनिको दान की। यहां हमें इस प्रन्थके महाबंध होनेका एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन उल्लेख मिल गया । शास्त्रीजीकी सूचनानुसार शेष कनाड़ी पद्योंमेंसे दो तीनमें माधनन्याचार्यके गुणोंकी प्रशंसा की गई है, तथा दो पद्योंमें शान्तिसेन राजा व उनकी पत्नी मल्लिकाम्बा देवीका गुणगान है, जिससे महाबंध प्रतिका दान करनेवाली मल्लिकाम्बा देवी किसी शांतिसेन नामक राजाकी रानी सिद्ध होती हैं। ये शान्तिसेन व माघनन्दि निःसंदेह वे ही हैं जिनका सत्कर्मपंजिकाकी प्रशस्तिमें भी उल्लेख आया है। प्रतिके अन्तमें पुनः ५ कनाड़ाके पद्य हैं जिनमेंसे प्रथम चारमें माघनन्दि मुनीन्द्रकी प्रशंसा की गई है व उन्हें ' यतिपति' 'व्रतनाथ' व 'व्रतिपति' तथा ' सैद्धान्तिकाग्रेसर' जैसे विशेषण लगाये गये हैं। पांचवें पद्यमें कहा गया है कि रूपवती सेनवधूने श्रीपंचमीव्रतके उद्यापनके समय (यह शास्त्र ) श्रीमाघनन्दि व्रतिपतिको प्रदान किया । यथा
श्रीपंचमियं नोंतुध्यापनेयं माडि बरेसि राध्यांतमना ।
रूपवती सेनवधू जितकोप श्रीमाघनन्दि व्रतिपति गित्तल ॥ यहां सेनवधूसे शान्तिसेन राजाकी पत्नीका ही अभिप्राय है । नामके एक भागसे पूर्णनामको सूचित करना सुप्रचलित है |
यह अन्तकी प्रशस्ति वीरवाणीविलास जैनसिद्धान्त भवनकी प्रथम वार्षिक रिपोर्ट (१९३५) में पूर्ण प्रकाशित है।
उक्त परिचयमें प्रतिके लिखाने व दान किये जानेका कोई समय नहीं पाया जाता। शान्तिसेन राजाका भी इतिहासमें जल्दी पता नहीं लगता । माघनन्दि नामके मुनि अनेक हुए हैं जिनका उल्लेख श्रवणबेलगोला आदिके शिलालेखोंमें पाया जाता है। जब शान्तिसेन राजाके उल्लेखादि संबन्धी पूर्ण पद्य प्राप्त होंगे, तब धीरे धीरे उनके समयादिके निर्णयका प्रयत्न किया जा सकेगा।
हम ऊपर कह आये हैं कि इस प्रतिमें महाबंध रचनाके प्रारंभका पत्र २८ वां नहीं है। शास्त्रीजीकी सूचनानुसार प्रतिमें पत्र नं.१०९,११४, १७३,१७४, १७६, १७७, १८३, १८४, १८५, १८६, १८८, १९७, २०८, २०९ और २१२ भी नहीं हैं । इसप्रकार कुल १६ पत्र नहीं मिल रहे हैं। किन्तु शास्त्रीजीकी सूचना है कि कुछ लिखित ताडपत्र विना पत्रसंख्याके भी प्राप्त हैं। संभव है यदि प्रयत्न किया जाय तो इनमेंसे उक्त त्रुटिकी कुछ पूर्ति हो सके।
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